पूछो गुलों से कि याद हमें आपकी किस कदर आती है,
कि गुल ही शर्मा जाते हैं हम देखते हैं जब उन्हें,
हर गुल में जो शबीह आपकी नज़र आती है।
पूछो हवा से कि क्यों बहती नहीं इस तरफ,
खुशबू जो हमें आपकी तडपाती है।
कैसे बनेगी उस लायक ये हवा,
सो मुह फेर कहीं और चली जाती है।
पूछो रात ये सितारों से क्यों टिमटिमाती है,
घनी काली अँधेरी क्यों नहीं हो जाती है?
जुल्फें जो हैं आपकी हमारे ख्वाबों में,
ये रात दिन बन कर हमे जगाना चाहती है।
फिर पूछो कि क्यों है हमें आपसे ये बेशुमार मोहब्बत,
कि हर रात ख़मा हमारी प्यार क्यों बरसाती है?
ज़हीर हैं आप हमारे हर ज़र्रे में है आपका नाम,
हर नुख्ते में तस्वीर आपके तिल कि जो नज़र आती है!
Tuesday, April 20, 2010
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"हर गुल में जो शबीह आपकी नज़र आती है।"
ReplyDeleteगुलाबी अंदाज बहुत खूब लगा - बधाई
मौहब्बत का आपका अंदाज़ बहुत अच्छा लगा. भाषा में शालीनता बहुत अच्छी लगी. बधाई
ReplyDeleteNice attempt.....!!!! Congrates...!!!!
ReplyDeletehttp://idharudharki1bat.blogspot.com
अच्छी रचना
ReplyDeletethankyou everyone..
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