बेगाने हो गए हम खुद से उल्फत में तेरी,
ले लिया मेरा दिल, मेरी सांस, सारी कायनात मेरी।
होश भी न रहा खुदापरस्ती में हमें,
बुतों से बन बन गए हम खुदानावाज़ी में तेरी।
पर है नहीं अफ़सोस हमें इस सरफरोशी का,
आखिर है कौन रहनुमा और इस ज़िन्दगी में मेरी?
दिखा दिया तुमने हमें मुल्क-ए-अदम का रास्ता,
ले लो तुम सारी वफ़ा मेरी, रूह मेरी, जान मेरी।
Monday, April 26, 2010
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