Friday, April 23, 2010

रिश्ते

क्या बादलों ने ज़मीन से रिश्ता तोड़ा है?
प्यास से तड़प जाने के लिए कभी छोड़ा है?
चाहे हो फासले हज़ारों इन दोनों के बीच,
पर क्या किनारों पे ज़मीन के उसका हाथ छोड़ा है?

क्या गुल बिन खिले ही मुरझा जाते हैं?
क्या भंवरों के बिन ही उनके दिन गुज़र जाते हैं?
अरे उन बांस के नख्लों का जस्बा देखो,
बरसों जो एक गुल के लिए जी जाते हैं।

क्या रात बिन सितारों के रह पाएगी?
क्या सेहर बिन मेहर हो पाएगी?
तुम पूछती हो इस रौशनी का राज़,
क्या शमा वोह तुम्हे कभी दिख पाएगी?

लगा लिया है जब दिल तुमसे,
फिर तोह चाहे जान चली जायेगी।
हम होने ना देंगे वो सेहर जब,
बिन देखे नज़्म हमारी तुम रह जाओगी।

और फिर पूछती हो कैसे ये शमा जल पाएगी,
वक़्त और फासलों में कैसे बुझ ना पाएगी।
रख लो ज़हन में वो बादल, ज़मीन, गुल, नख्ल, मेहर, सेहर, रात और सितारे,
फिर देखना वो शमा तुम्हे खुद में ही मिल जायेगी।

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