सोचते हैं किस किस तरह से इज़हार-ए-इश्क करेंगे फ़िराक में,
क्या तरीके और भी हैं दिलनवाज़ी के आशिकी की दयार में?
लफ़्ज़ों में अपना जी घोल दिया, आवाज़ में दिल पिरो दिया,
क्या दिया है खुदा ने वो हुनर इस दिल की चार दीवार में?
पर करिश्मा तोह देखो आपसे जुदाई का,
तन्हाई में भी रवां रहता है सैलाब आशनाई का।
हो ऐसे नाखुदा आप कश्ती के हमारे,
डुबाते हो प्यार में रोज़ लेकिन एहसास है मंजिल से मिल जाने का।
तो नूर मेरे देख लो आज एक और लफ़्ज़ों की बारात,
हम ढूंढते रहेंगे रास्ते इज़हार-ए-इश्क की मंजिलों के।
आप कहें भी अगर की आप नहीं काबिल-ए-वफ़ा हमारी,
हम होते रहेंगे फना रोज़ शमा-ए-दिल में आपकी परवानो जैसे।
Thursday, April 22, 2010
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