Monday, February 1, 2010
लोक सभा चुनाव के पहले..
डूब गया है हर कोई इस शोर के समंदर में,
कैसे सुने कोई हकीकत की आवाज़ इस बवंडर में।
अनदेखी ताकतें खींची चली जाती हैं ज़हन को इस भंवर में,
तकदीर बेघर हो रही है खुद अपने ही घर में।
अँधा धुंध चलते जाओ कोई रास्ता तो निकल ही आयेगा,
पर गुलामी के कफ़न से क्या सय्याद तुम्हे बचाएगा?
फिर भी चलते जाओ, अंधे को कोई रास्ता तो दिखायेगा,
पर ये भी तो समझो की अंधे को अँधा क्या दिखलायेगा?
बैठ गयी है तान के एक धुन लेकिन हर मन में,
उस धुन को गाने और तुम्हे नचवाने कोई नेता ही आयेगा।
आजाद हो गए मगर आज़ादी नहीं देखी,
इस शब्द का अर्थ तो शायद तुम्हे भगवान ही बताएगा।
तो चलो मेरे साथियों वोट देते हैं,
अंधों के देश में राह आखिर कोई अँधा ही दिखायेगा।
और क्या फर्क पड़ेगा जो कोई भी जीते,
अंधों के देश को आखिर एक अँधा ही चलाएगा।
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