हो जाएगी सहर जब आँखें पड़ेंगी इस पर,
पर वो सहर तेरे बिना मैं जीना नहीं चाहता।
सुन लूँगा साज़ जब रह जाएगी सिर्फ एक याद,
पर तुम्हारी आवाज़ के बिना मै जीना नहीं चाहता।
जाऊंगा जब मैं कहीं साथ होगा कोई और,
पर तेरे दीदार के बिना मैं जीना नहीं चाहता।
दिल में इतनी यादें और बेशुमार ये ग़म,
पर तेरी यादों कि ख़ुशी के बिना मैं जीना नहीं चाहता।
जीना नहीं चाहता फ़िराक की तारीकी में,
इस तारीकी में शमा मैं जला नहीं पाता।
और कैसा ये मंज़र तुम्हारे जाने से पहले,
कि इस शमा को जलाये बिना मैं मरना भी नहीं चाहता।
Wednesday, February 17, 2010
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